बहेलिया का खेल (कविता)

कुछ तोतों ने ठान लिया था
सब फल हो जाएँ अमरूद

कुछ बग़ुलों ने ज़िद लड़ाई
सब मेंढक हो जाएँ मछली
कुछ बाज़ ने दम ठोका
सब मुर्ग़ी हो जाएँ चूज़े

सबको अपने स्वाद का मान था
सबको अपने धर्म का अभिमान था
कुछ ने ढोया बाइबिल
कुछ ने ढोया कुरान
कुछ ने गीता तो कुछ ने ढोया पपीता
बहेलिया आया और उसने सबको बहुत लूटा

खाने को जो लड़ रहे थे सपना हुआ चूर
बहेलिया का खेल था वह तोता लेकर भागा
बग़ुला लेकर दौड़ा
बाज़ लेकर फुर्र
फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र।


रचनाकार : अनुज लुगुन
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