क्या हो गया है मुझे?
बड़ी बहन हो गई क्यों इतनी बड़ी!
नाम से उसके ब्याह भागते हैं दूर।
चुराकर छोटे भाई के प्रेमपत्र
सबके सामने बाँच कर हँसती है;
पढ़कर अकेले में गुमसुम हो रहती है।
छोटी बहन सुधा को पढ़ाने,
नौ बजते ही आता है ट्यूटर।
कितना शरीफ़, कितना मेहनती है।
दफ़्तर से अक्सर लेता है छुट्टी
और पढ़ाता है सारे-सारे दिन।
जाते हैं मैं, बाप दफ़्तर,
माँ बाज़ार,
भाई स्कूल, और बड़ी सेंटर।
पर पढ़ाता है अकेला मेहनती ट्यूटर।
ट्यूटर की क़मीज़ में बटन टाँकती है सुधा,
फ़ैशन पर बहसती है ट्यूटर से सुधा,
जब चाय के लिए, तब खाने के लिए,
और अब हाथ से किताब छीनने के लिए,
ज़िद्द करती है, उलझी रहती है ट्यूटर से सुधा।
कॉपियों में छिपाकर नीले पत्र रखती है सुधा।
सिर्फ़ पड़ा देखता हूँ और सिगरेट फूँकता हूँ।
माँ गांधारी बैठी है सामने।
बड़ी की एक आँख हाथ के ताश में,
दूसरी जड़ी है पहले ट्यूटर फिर सुधा में।
मेज़ के नीचे दो पाँव टकराए।
माँ, बाप और मैं कोई नहीं देखता यह,
क्योंकि ठेका लिया है सिर्फ़ बड़ी बहन ने।
बाद में क्यों गालियाँ उगलता है बाप?
क्यों अफ़सोसती है माँ—
“दो महीने से पैसे नहीं दिए उन्हें।”
बड़ी संदेह की नदी है।
क्यों रोती है सिर्फ़ सुधा!
क्यों कुछ नहीं होता मुझे??
उबलता नहीं क्यों, खौलता नहीं क्यों??
क्या हो गया है मुझे??
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