साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
महेन्द्रगढ़, हरियाणा
1992
अन्न के ही अन्नदानों भारती के खलिहानों, धरती पुकारती है बैठ मत जाइए। बोल रही सर पर महँगाई घर पर, लुट रही लाज आज फिर से बचाइए। जिनसे है आस वहीं दास बन जाए नहीं, भूख का बबाल भाल जीत के दिखाइए। ये जनता का मन है जो करती नमन है, भूखा ना तिरंगा सोए खेत लहराइए।
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