साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3571
मधुबनी, बिहार
2004
कल जो भगा रहा था मुझे, आज वह मुझे बुला रहा है। कल जिस ने रुलाया था, आज वही हँसा रहा है। यह ज़िंदगी का बदलता दौर है, जहाँ परिवर्तन की शिलाएँ हैं। कुछ रास्ते ग़म से भरे हैं, जिसमें कई बाधाएँ हैं। पर यह बाधाएँ उन काँटों की तरह है, जो फूल को बचाए रखते हैं। संसार से उनकी रक्षा कर हदय से लगाए रखते हैं।
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