बचपन में गाँव हमेशा दस किलोमीटर दूर लगता था,
न कम न ज़्यादा।
एक तो बुद्धि दस वर्ष से ज़्यादा न थी और दूसरे दस का नोट बहुत बड़ा लगता था।
गड्ढे वाले सड़को से,
दस की स्पीड से चलती बस में बैठकर, छोटे क़दमों से,
फिर भी हम गाँव पहुँच ही जाते थे।
आज गड्ढे भर गए हैं,
बुद्धि भी बढ़ गई है,
और बस की स्पीड भी।
यह देख गाँव ने भी अपनी दूरी दस किलोमीटर से ज़्यादा बढ़ा ली हैं।
अब वहाँ पहुँचने में कई बरस लग जाते हैं।

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