बच्चों की तरह (कविता)

बच्चे की तरह हँसे
और जब रोए तो बच्चे की तरह
ख़ालिस सुख ख़ालिस दुख

न उसमें ख़याल कुछ पाने का
न मलाल इसमें कुछ खोने का
सुनहली हँसी और आँसू रुपहले
दोनों ऐसे कि मन बहला
उससे भी इससे भी

कोरे क़िस्से भी अंश हो गए अपने
हर छाया के पीछे दौड़ाया सपनों ने
और दब गई पाँवों के नीचे दौड़ते-दौड़ते
कोई छाया

तो हँसे खिलखिलाकर बच्चों की तरह
और छूट गया
हाथ छाया का आकर हाथ में

तो रोये तिलमिलाकर बच्चों की तरह
ख़ालिस सुख
ख़ालिस दुख!


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