भाषण देने कभी गया था
मथुरा के कोई कॉलिज में
रस्ते भर खाने के पैसे बचा लिए थे।
और ख़रीदे थे जो मैंने
जन्मभूमि वाले मंदिर से,
मुझे देख जो मुस्काते थे
नटखट शोख़ इशारे करके,
तुम्हें देख जो शरमाते थे,
सहज रास आँखों में भरके,
आले में चुपचाप अधर पर वेणु टिकाए,
अभी तलक क्या वो छलिया घनश्याम रखे हैं?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं?
आँसू की बारिश में भीगे
ठोड़ी के जिस तिल को मैंने
विदा-समय पर चूम लिया था
और कहा था ‘मन मत हारो’
तुम से अनगाया गाया है
तुमको खो कर भी पाया है
चाहे मैं दुनिया भर घूमूँ,
धरती भोगूँ, अंबर चूमूँ
इस तिल को दर्पण में जब भी कभी देखना,
यही समझना—
ठोड़ी पर यह तिल थोड़ी है,
जग-भर की नज़रों से ओझल,
मेरी भटकन रखी हुई है,
मेरे चारों धाम रखे हैं।
सच बतलाओ, नए प्रसाधन के लेपन में
चेहरे की चमकीली परतों के ऊपर भी
जिसमें तुमको ‘मैं’ दिखता था।
गोरे मुखड़े वाली
चाँदी की थाली में अब तक भी
क्या मेरे शालिग्राम रखे हैं?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं?
सरस्वति पूजन वाले दिन,
मेरा जन्म-दिवस भी है जो,
बाँधी थी जो रंग-बसंती वाली साड़ी,
फाल ढूँढ़ने को जिसका मैं
तीन-तीन बाज़ारों तक ख़ुद
दौड़-दौड़ कर फैल गया था,
बी.एड. की गाइड हो या हो
लव-स्टोरी की वी.सी.डी.,
मौसी के घर तक जाने को,
सीट घेरनी हो जयपुर की बस में चाहे,
ऐसे सारे ग़ैर-ज़रूरी काम, ज़रूरी हो जाते थे,
एक तुम्हारे कहने भर से।
अब जिसके संग निभा रही हो,
हँस-हँस कर अनमोल जवानी,
उस अनजाने, उस अनदेखे,
भाग्यबली के हित भी तुमने
ऐसे ही क्या ग़ैर-ज़रूरी काम रखे हैं?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं?
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें