अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना (ग़ज़ल)

अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना
तूती को शश-जिहत से मुक़ाबिल है आइना

हैरत हुजूम-ए-लज़्ज़त-ए-ग़लतानी-ए-तपिश
सीमाब-ए-बालिश ओ कमर-ए-दिल है आइना

ग़फ़लत ब-बाल-ए-जौहर-ए-शमशीर पर-फ़िशाँ
याँ पुश्त-ए-चश्म-ए-शोख़ी-ए-क़ातिल है आइना

हैरत-निगाह-ए-बर्क़-ए-तमाशा बहार-ए-शोख़
दर-पर्दा-ए-हवा पर-ए-बिस्मिल है आइना

याँ रह गए हैं नाख़ुन-ए-तदबीर टूट कर
जौहर-तिलिस्म-ए-उक़्दा-ए-मुश्किल है आइना

हम-ज़ानू-ए-तअम्मुल ओ हम-जल्वा-गाह-ए-गुल
आईना-बंद ख़ल्वत-ओ-महफ़िल है आइना

दिल कार-गाह-ए-फ़िक्र ओ 'असद' बे-नवा-ए-दिल
याँ संग-ए-आस्ताना-ए-'बेदिल' है आइना


रचनाकार : मिर्ज़ा ग़ालिब
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