अश्व-गंध (कविता)

हवाओं में एक उन्मत्त अश्व-गंध
जिसका पीछा करते पूरी तहज़ीब
आदिम हुए जाती है :

गुफाओं में कौन ईजाद कर रहा है
हर चेहरे में भील। सड़क के क़ायदों में जो नहीं लिखा है
वह आज इमारतों पर लिख रहा है इतिहास
पत्थर उठाने के सिवाय
इंसानियत को मोहलत दे देने का कौन-सा प्रायश्चित है

हर उठता हुआ हाथ सूर्योदय है। हर ठहरा क़दम मक़बरा
जिसके मुनासिब जो है वह उसकी तारीख़
पागल घोड़ों की
आदिम-गंध तहज़ीब किए जाती है
हवाओं की हरकत को।


रचनाकार : सुदीप बनर्जी
यह पृष्ठ 206 बार देखा गया है
×

अगली रचना

आसमान तुम्हारे कितने तारे


पीछे रचना नहीं है
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें