साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
1935
शाम हुई और धुँध-सी छा गई चारों ओर छिप गए नदी तट छिप गए चमकते हुए टीले कितना आश्चर्य कि पूरे-पूरे वृक्ष छिप गए अकेले बैठे प्रेमी जनों की आड़ में
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