प्रकृति की व्यवस्था में भी
बहुतेरी विडंबनाएँ हैं,
यह विडंबनाएं भी कभी-कभी
होती बहुत दुखदाई होती हैं।
माना कि आना-जाना
सृष्टि का नियम है,
जन्म और मृत्यु अटल सत्य है।
पर ऐसा भी नहीं है कि
ईश्वर और सृष्टि की व्यवस्था में
अपवाद ही नहीं है।
व्यवस्था किसी की भी हो
ईश्वर, सृष्टि या मानव की
अपवाद होते ही हैं,
किसी की दुनिया से असमय विदाई
अप्राकृतिक मृत्यु चुभते शूल से हैं।
यह अलग बात है कि
हम मृत्यु से भाग नहीं सकते
पर किसी की असमय
दुनिया से विदाई,
झकझोर देते हैं,
अंदर तक झिंझोड़ देते हैं,
हमें भीतर तक तोड़ देते हैं,
हर ओर अँधेरा सा हो जाता है,
मगर फिर भी जीना पड़ता है।
ख़ुशी से या दुःख से
सच स्वीकार करना ही पड़ता है,
विदाई समय से हो या असमय
थक हार कर विदा करना ही पड़ता है,
प्रकृति और ईश्वर की
हर व्यवस्था के आगे
हमेशा झुकना ही पड़ता है।
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