अंतिम अरदास (कविता)

लौटते हुए कवि
लौटा देता है स्रष्टा को
दिक् और काल
तुकबंदी की पुरानी आदत
कला और साँस
मिट्टी और नियति

मृत्यु के चरम समय में
कवि करता है अरदास
धर्मगुरुओं की तरह
उसे मिले एक और क्षण
एक और साँस
जीवन-सूत्र को जोड़ने के लिए

लेकिन यह पढ़कर
मत मान बैठना कि
ब्रह्मांड के विस्तार के लिए
केवल कवि उत्तरदायी है
और ब्रह्मांड तथा मूर्खता का
नहीं है कोई ओर-छोर

यदि तुम ऐसा करोगे
तो चूकोगे स्वयं ही
ठीक प्लेटो की तरह
जिसने ख़ारिज करना चाहा
कवियों को अपने गणतंत्र से

बहुत रहस्यमय है और जटिल भी
लेने और लौटाने की प्रक्रिया
चीजे़ं अक्सर नहीं दिखाती उन रंगों को
जिन्हें वे स्वीकार कर रही होती हैं
चीजे़ हमेशा दिखती हैं
अपनी अस्वीकृति के रंगों में ही

एक कौंध की तरह है
सच्चे कवि का होना
जिसके सघन प्रकाश में
हम फिर-फिर दोहराते हैं
जीवन का मूल-पाठ

लौटते हुए कवि ख़र्च कर देता है
अपने आपको पूरी तरह
ताकि अंतिम उजास में
फिर से दिख जाए
जीवन का होना
जीवन का जादू-टोना

तुम इसे मोक्ष कहो
यह ज़रूरी नहीं है


यह पृष्ठ 564 बार देखा गया है
×
आगे रचना नहीं है


पिछली रचना

दिल्ली
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें