अँधियारी रातें
हैं करती
रहीं रुदाली।
चाँद तारे
बहुत ही
ग़मगीन दिखे।
बात करें
भारत की तो
चीन दिखे।।
छिछोरी हरकत
जेठ मास की
लगे कुचाली।
मधुऋतु को
जाने है
सदमा किसका।
सियाचिन का
हिमनद-
धीरे से खिसका।।
जैसे किसी
झोपड़ी में
घुस जाए रुजाली।
घास के
मैदान उतरे
खेतों में।
कल्पतरु शमी
मुस्काया-
रेतों में।।
बरो को
जड़ से उखाड़ने
अब चली कुदाली।

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