सुकुमा की धरती हुई, आज रक्त से लाल।
परिजन सारे रो रहे, होकर के बेहाल॥
होकर के बेहाल, तड़पते घायल सैनिक।
ज़ालिम चलते चाल, हया भी आज गई बिक॥
ममता कहती आज, लगी जन-जन को सदमा।
अमर हुए जाँबाज़, व्यथित अतिशय है सुकुमा॥

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएप्रबंधन 1I.T. एवं Ond TechSol द्वारा
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें
