ज़िंदगी एक अग्निपथ है,
मन की स्वयं से शपथ है।
उस पार हिमगिरि शृंखला,
बीच अनल जीवन रथ है।
तरकश में अकाट्य तीर हों,
रक्षा हेतु सशक्त प्राचीर हों।
जीने की राह अंगार जड़ी,
मन सदा सजग गम्भीर हो।
आकाश में रक्तिम दिवाकर,
अंधड़ उष्ण तप्त है दोपहर।
रिसते हों चाहे पाँवों के छाले,
शीत बयार की आस न कर।
मंज़िल समक्ष चल अविराम,
पास खड़ी जीवन की शाम।
वक्त द्रुतगति से है भाग रहा,
मानव भाग्य में कहाँ आराम।।

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