अडोल (कविता)

डेल्टा में जमा हो रहते नदी के अवसाद
बहने नहीं पाता जल, फड़फड़ा के मर जाता।

तरल का वेग नष्ट करने वाले त्रिकोण
बन जाते हत्यारे जल के, जल की हलचल के
किनारियों पर जमती चली जाती काई परत दर परत
ज्यों मिनटों पर जमा होते मिनट खड़े कर देते पहाड़ घंटों के, माह के,
बरसों के, सदियों के।

तितली-वनस्पतियाँ, बादल-चट्टानें, मन-मनुष्य फिसलते अपनी-अपनी आयु के भीतर,
और समय अडोल।

कोई सावन का अंधा फिसल गिरता हरे के अँधेरे में
टूटती नहीं हड्डियाँ
मन टूट कर डेल्टा में घुल जाता

और जल अडोल।


रचनाकार : बाबुषा कोहली
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