आसमाँ क्यों जल रहा है भाइयो (ग़ज़ल)

आसमाँ क्यों जल रहा है भाइयो,
झूठ सच को छल रहा है भाइयो।

जो समय बेकार सा लगता रहा,
वो समय अब ढल रहा है भाइयो।

चाँद भी शीतल रहा करता अगर,
चाँद लेकिन गल रहा है भाइयो।

बात ऐसी कर गए हैं आज वे,
शब्द उनका खल रहा है भाइयो।

पेड़ पत्थर खा रहे हैं देख लो,
और फिर भी फल रहा है भाइयो।


  • विषय :
लेखन तिथि : 19 सितम्बर, 2022
यह पृष्ठ 166 बार देखा गया है
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती : 2122 2122 212
×

अगली रचना

आदेश की अवहेलना


पिछली रचना

जल ओक में भरने लगी


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें