आसमान तुम्हारे कितने तारे (कविता)

आसमान, तुम्हारे कितने तारे
तुम्हें परेशान करते हैं,
जंगल, तुम कितने पेड़ों से उदास होते हो
नदी, तुम्हारा कितना पानी दरकिनार हो जाता है?

मैं आसमान का समकालीन
तारों का हमराह नहीं
जंगल का बाशिंदा हूँ
पेड़ों पर नहीं चढ़ता
लकड़हारा भी नहीं

नदी के मर्मस्थल का साकिन
मछलियों के उल्लास से ग़ाफ़िल।


रचनाकार : सुदीप बनर्जी
यह पृष्ठ 272 बार देखा गया है
×


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें