भटक रहा है क्यूँ दर-दर,
स्वयं को अब जगाएँ।
अंतःकरण में तमस है,
आओ शमा जलाएँ।
सुंदर-सुंदर बातें भी,
अमल बिन सब व्यर्थ है।
तार जुड़ेगी जब उससे,
तब समझना अर्थ है।
बिन गुरु ग्रंथ बेकार है,
उनसे प्रीत लगाएँ।
अंतःकरण में तमस है,
आओ शमा जलाएँ।
लोक प्रसिद्धि मोक्ष कैसे?
चलो वहम से निकलें ।
करके संवाद प्रकृति से,
जीवन को ही पढ़ लें।
भव पार लगे अब ख़ुद को,
खेवनहार बनाएँ।
अंतःकरण में तमस है,
आओ शमा जलाएँ।
भूल भुलैया उलझन है,
उजाड़ भ्रम की टाटी।
गुमनाम भले तू रह ले,
पर रहे सजग माटी।
समाहित कर ब्रह्मांड को,
अणु में बृहद समाएँ।
अंतःकरण में तमस है,
आओ शमा जलाएँ।
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