आँखों में नमी हैं (कविता)

क्यूँ जा रहे हो यार, मुझमें क्या कमी हैं,
झूठा नहीं हूँ मैं, देख, आँखों में नमी हैं।

मेरे दिल में बह रही प्रेम की ठंडी बयारें,
फिर भी क्यों हैं तुम्हारी आँखों में अँगारे।

मेरी व्यथा को सुनो मेरे प्रिय, यूँ न जाओ,
मैं पत्थर ही सही पर पारस हूँ, न गँवाओ।

नज़र की राह में तू दिख रही पद्मावती हैं,
कैसे मैं खो दूँ, तू इस भोले की पार्वती हैं।

भुलाकर रंज-ओ-ग़म फिर से गले लगाओ,
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ, यार मत ठुकराओ।

निष्प्राण हो गया शरीर, बन गया कंकाल,
छू कर मेरे बदन को करो ईलाज तत्काल।

सुनते हैं जहाँ में, जैसी करनी वैसी भरनी,
प्रेम को नहीं मिला प्रेम, झूठी हैं ये कथनी।

तेरे बग़ैर भी ज़िंदा रहूँ, ये मेरी विवशता हैं,
तुझें न पाना ही कर्मवीर की असफलता हैं।


लेखन तिथि : 15 दिसम्बर 2024
यह पृष्ठ 301 बार देखा गया है
×

अगली रचना

राम-राम


पिछली रचना

फिरती घिरती छाया
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें