आम आदमी और कोरोना (आलेख)

यह जीवन जितना दुर्लभ है उतना ही जीना दुष्कर।
हमारा देश विगत दो सालों से जिस विषम परिस्थितियों से गुज़र रहा है, उसका चिन्ह साफ़ हमारे देशवासियों के मुख पर देखा जा सकता है। इस कोरोना बीमारी ने सिर्फ़ हमारा स्वास्थ्य ही नहीं छीना अपितु हमारी रोजी रोटी पर भी ग्रहण लगा दिया। जितने लोग इस बीमारी से आक्रान्त हैं उससे कई गुना ज़्यादा इस बात से भी चिंतित है कि अगर ऐसा ही कुछ दिन और रहा तो कितनी भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती।

पिछले साल कोरोना से कितने लोगो का प्राणांत हुआ, इसकी सूचना हमें दूरदर्शन अथवा दूर शहरों में रहने वाले हमारे अपनों से प्राप्त होता था, जिसे सही मायने में हम गंभीरता से नहीं लेते थे, पर आज तो हमारे मध्य रहने वाले हमारे मित्र, संबंधी, रिश्तेदारों को इस रोग से ग्रसित देख हमें यकीन ही नहीं हमारे अंदर भय भी व्याप्त हो गया है, और होना भी परम आवश्यक है क्योंकि न तो इसका इलाज सुलभ है और न ही अस्पताल का बेड।

इस समय की सर्दी खाँसी का कुछ समय का आतिथ्य कोरोना के पूर्वानुमान की सूचना देने लगता है, जो सिर्फ़ हमारी ही नहीं हमारे परिवार वालों की चिंता भी बढ़ा देती है। इसका बचाव ही इसका इलाज है, हमें अत्यंत गंभीरता से इसे लेते हुए मास्क पहने रहना है तथा जब भी घर पर कहीं बाहर से आए निश्चित रूप से अपने हाथों को सेनेटाइज करना है।

बीमारी और दुश्मन को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए, क्योंकि ये दोनों हमारे मर्म स्थल पर ही घात लगाए रहते हैं, और जैसे इनको अवसर मिलता है वैसे ही अपनी पूरी शक्ति के साथ वार कर देते हैं। इसलिए पूरी सावधानी बरतें और सजग रहें।

अनावश्यक घर से बाहर न जाएँ। घर पर रहें और स्वस्थ रहें साथ ही व्यायाम करें ताकि हमारा शरीर सबल बन सके जिससे कोई भी रोग हम पर हावी न होने पाए।
कहा भी गया है-
"व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं।
आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्॥"
अर्थात-
"व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं"


रचनाकार : प्रवीन 'पथिक'
लेखन तिथि : मई, 2020
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