आखेट (कविता)

तुम
उस परिंदे की तरह
कब तक डैने फड़फड़ाओगे
जिसकी गर्दन पर रखा हुआ है
चाहत का चाक़ू

उड़ान भरने के पहले ही
तुमने खो दिए हैं अपने पंख
प्यास बुझाने के पहले ही
विष पी लिया
अमृत पाने के लिए

तुम्हारे जैसा कौन मरता है
लालसाओं के जलसाघरों में
तिल-तिल घुट-घुट कर
न तुम्हें प्रेम करना आया
बहती रही वह
तुम्हारी धमनियों में
रक्त की वर्णमाला की तरह
अलिखित अपरिभाषित

और न तुम्हें घृणा करना आया
जिसे तुम नकटी जादूगरनी कहते ही
उदास होकर रो देते हो
सारे जीवन उसके मायाजाल में
जकड़े रहे
कि अंत में स्पाइडर की तरह
अपनी ही वासना की चरम परिणति में
आखेट कर लिए गए


रचनाकार : आग्नेय
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