आग हुआ मौसम (नवगीत)

भट्टी की
धधक रही
आग हुआ मौसम!

हवाएँ हैं,
लपट है,
लू है!
गर्म तवे
सी तपती
भू है!

ॠतुओं के
दामन पे
दाग हुआ मौसम!

प्यासे हैं
नदी और
झरने!
पेड़, पात,
फूल लगे
डरने!

आग उगलता
रवि
घाघ हुआ मौसम!

चंद्रपुर गर्म
जम्मू ठंडा!
कुआँ पहने
तावीज गंडा!

जिला, प्रदेश
और संभाग
हुआ मौसम!


लेखन तिथि : 3 मई, 2019
यह पृष्ठ 288 बार देखा गया है
×

अगली रचना

खेले दिनमान


पिछली रचना

पोखर ठोंके दावा
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें