एक आदमी क्या चाहता है
सिवाय इसके
कि उसे भी प्यार किया जाए
उसे प्यार किया जाए इस
आशा से वह देखता है
इस आदमज़ाद को
जोकि बस जाने को ही है
प्यार से देखना ही सिर्फ़
प्यार करना नहीं है शायद
प्यार से देखती उसकी आँखें
पीछा करती हैं उस आदमज़ाद का
उस अंधी सुरंग तक
अंधी सुरंग का अँधेरा उसकी
आँखों में उतर रहा है
उतर रहा है अँधेरा उसके जिस्मो-जाँ में
अपने ख़ून सने
पंजों को फैलाता हुआ
इसके पहले कि अँधेरा उसे
जकड़कर बाँध ले वह
चूम लेना चाहता है उसे
जिसके जाने को देखती हुई प्यार से
आशा भरी आँखें खींच लाई थीं
उसे इस तहख़ाने तक
पर यहाँ से एक दूसरी ही सुरंग
शुरू होती है जिसमें कि
वह चला गया है
आगे उसका अपना अँधेरा भी है जिसे
वह चूमना चाहता है जो उसके भी
अँधेरे से भयावह है शायद
भूख, बेबसी और अँधेरे की
अलग ही दुनिया है वहाँ जिससे
नावाक़िफ़ था वह अब तक
एक आदमज़ाद क्या चाहता था
सिवाय इसके कि उसे
प्यार किया जाए।
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