आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है (ग़ज़ल)

आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है
ताक़त-ए-बेदाद-ए-इंतिज़ार नहीं है

देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले
नश्शा ब-अंदाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं है

गिर्या निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को
हाए कि रोने पे इख़्तियार नहीं है

हम से अबस है गुमान-ए-रंजिश-ए-ख़ातिर
ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुबार नहीं है

दिल से उठा लुत्फ़-ए-जल्वा-हा-ए-मआनी
ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं है

क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे
वाए अगर अहद उस्तुवार नहीं है

तू ने क़सम मय-कशी की खाई है 'ग़ालिब'
तेरी क़सम का कुछ ए'तिबार नहीं है


रचनाकार : मिर्ज़ा ग़ालिब
  • विषय : -  
यह पृष्ठ 528 बार देखा गया है
×

अगली रचना

शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है


पिछली रचना

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें