भाषा (कविता)

पृथ्वी के अंदर के सार में से
फूट कर निकलती हुई
एक भाषा है बीज के अँकुराने की।

तिनके बटोर-बटोर कर
टहनियों के बीच
घोंसला बुने जाने की भी एक भाषा है।

तुम्हारे पास और भी बहुत-सी भाषाएँ हैं
अंडे सेने की
आकाश में उड़ जाने की
खेत से चोंच भर लाने की।

तुम्हारे पास
कोख में कविता को गरमाने की भाषा भी है
तुम बीज की भाषा बोलीं
मैं उग आया
तुमने घोंसले की भाषा में कुछ कहा
और मैं वृक्ष हो गया
तुम अंडे सेने की भाषा में गुनगुनाती रहीं
और मैं आकार ग्रहण करता रहा।

तुम्हारे आकाश में उड़ते ही
मैं खेत हो गया।

तुमने चोंच भरी होने का गीत गाया
और मैं नन्हीं चोंच खोले
घोंसले में चिंचियाने लगा।

तुम्हें आश्चर्य हो रहा होगा कि मैं
तुम्हारी कोख में गरमाती
कविता में भाषा बोल रहा हूँ।


रचनाकार : शरद बिलाैरे
यह पृष्ठ 297 बार देखा गया है
×


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें