क़ितआ

हज़ार दर्द शब-ए-आरज़ू की राह में है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हज़ार दर्द शब-ए-आरज़ू की राह में है कोई ठिकाना बताओ कि क़ाफ़िला उतरे क़रीब और भी आओ कि शौक़-ए-दीद मिटे शराब और पिलाओ
दर-ब-दर सर झुकाए फिरता है
वसीम बरेलवी
दर-ब-दर सर झुकाए फिरता है आरज़ी इक़्तिदार की ख़ातिर कितना मजबूर हो के जीता है आदमी इख़्तियार की ख़ातिर
मौत के ब'अद भी तो चलता है
वसीम बरेलवी
मौत के ब'अद भी तो चलता है ज़िंदगी तेरे जब्र का नाटक फूल हँसते हुए ही जाते हैं शाख़ से बाग़बाँ की झोली तक
यूँ लगे तेरे तज़्किरा से अगर
वसीम बरेलवी
यूँ लगे तेरे तज़्किरा से अगर नाम मेरा हटा दिया जाए जैसे इक फूल की कहानी से ज़िक्र-ए-ख़ुशबू उड़ा दिया जाए
दूसरों को मिटाने की धुन में
वसीम बरेलवी
दूसरों को मिटाने की धुन में आदमी ख़ुद को यूँ मिटाता है जैसे चुभने की फ़िक्र में काँटा शाख़ से ख़ुद ही टूट जाता है
मेरी तन्हाइयाँ भी शाएर हैं
वसीम बरेलवी
मेरी तन्हाइयाँ भी शाएर हैं नज़्र-ए-अशआर-ओ-जाम रहती हैं अपनी यादों का सिलसिला रोको मेरी नींदें हराम रहती हैं
फूल ख़ुद अपने हुस्न में गुम है
वसीम बरेलवी
फूल ख़ुद अपने हुस्न में गुम है उस को कब चाहने की फ़ुर्सत है आओ काँटों से दोस्ती कर लें जिन को हमदर्द की ज़रूरत है
उसी अदा से उसी बाँकपन के साथ आओ
मख़दूम मुहिउद्दीन
उसी अदा से उसी बाँकपन के साथ आओ फिर एक बार उसी अंजुमन के साथ आओ हम अपने एक दिल-ए-बे-ख़ता के साथ आएँ तुम अपने महशर-ए-दार
तू ने किस दिल को दुखाया है तुझे क्या मालूम
मख़दूम मुहिउद्दीन
तू ने किस दिल को दुखाया है तुझे क्या मालूम किस सनम-ख़ाने को ढाया है तुझे क्या मालूम हम ने हँस हँस के तिरी बज़्म में ऐ
ये रक़्स रक़्स-ए-शरर ही सही मगर ऐ दोस्त
मख़दूम मुहिउद्दीन
ये रक़्स रक़्स-ए-शरर ही सही मगर ऐ दोस्त दिलों के साज़ पे रक़्स-ए-शरर ग़नीमत है क़रीब आओ ज़रा और भी क़रीब आओ! कि रूह का
अभी न रात के गेसू खुले न दिल महका
मख़दूम मुहिउद्दीन
अभी न रात के गेसू खुले न दिल महका कहो नसीम-ए-सहर से ठहर ठहर के चले मिले तो बिछड़े हुए मय-कदे के दर पे मिले न आज चाँद ही �
किस लिए तोड़ते हो आस दीद जमाल यार की
जगत मोहन लाल रवाँ
किस लिए तोड़ते हो आस दीद जमाल यार की उक़्दा-कुशा-ए-अहल-ए-दिल कोई नहीं क़ज़ा तो है वज्ह-ए-सुकून-ए-क़ल्ब-ए-ज़ार है ये ख़�
मुझे इक्सीर मेरी आह-ए-सोज़ाँ कर के छोड़ेगी
जगत मोहन लाल रवाँ
मुझे इक्सीर मेरी आह-ए-सोज़ाँ कर के छोड़ेगी क़नाअ'त मेरी दर्द-ए-दिल को दरमाँ कर के छोड़ेगी तहय्या है कि अब या मैं रहू�

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