गीतिका

जैसा चलता है चलने दे
अविनाश ब्यौहार
जैसा चलता है चलने दे, सूरज ढलता है ढलने दे। तम को है दूर भगाने को, दीपक जलता है जलने दे। शम्मा महफ़िल में जलती है, औ
मैंने देखा एक ज़माना
अविनाश ब्यौहार
मैंने देखा एक ज़माना, पड़ा सिरफिरों को समझाना। गौरैया आँगन में केवल, ढूँढ़ रही अनाज का दाना। एक शख़्स को देख रहा हू�
जब जिसने है अपकार किया
अविनाश ब्यौहार
जब जिसने है अपकार किया, कुछ भी हो अंगीकार किया। थोड़ी सी राहत माँगी थी, पर उनने है इंकार किया। युद्ध अगर हल ही होग�
अपराधी है तो थाना है
अविनाश ब्यौहार
अपराधी है तो थाना है, कैसा खूँखार ज़माना है। हमको अनजाना शहर मिला, औ सारी रात बिताना है। हासिल करने की ख़्वाहिश में,
ख़्वाहिश का उठे जनाज़ा है
अविनाश ब्यौहार
ख़्वाहिश का उठे जनाज़ा है, ख़बर अख़बार की ताज़ा है। मूल सूद चुकता है फिर भी, बेजा है चूँकि तक़ाज़ा है। हम समझे उन्हे बे-अद�
बे-नियाज़ अब नहीं मिलेंगे
अविनाश ब्यौहार
बे-नियाज़ अब नहीं मिलेंगे, पतझर में गुल कहाँ खिलेंगे। नैतिकता का क़त्ल हुआ है, धरती, अंबर, शिखर हिलेंगे। नर्म-नर्म द
चावल उबला पीच रहा है
अविनाश ब्यौहार
चावल उबला पीच रहा है, माली पौधे सींच रहा है। क़ातिल सा अंधेरा देखा, एक किरण को भींच रहा है। सूरज ने बादल जब देखा, अप�
है मर गया आँख का पानी
अविनाश ब्यौहार
है मर गया आँख का पानी, बाग सरीखी नष्ट जवानी। ख़ुशी मिली रस्ते में मुझको, दिखती थी वो कुबड़ी कानी। झुग्गी के ख़्वाबों

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