
रांगेय राघव
प्रगतिशील उल्लेखनीय कथाकार। गद्य विधाओं के साथ-साथ पद्य लेखन में भी निपुण।
तिरूमल्लै नंबकम् वीरराघव आचार्य
17 जनवरी, 1923
12 सितम्बर, 1962
13 वर्ष की उम्र से
हिंदी में स्नातकोत्तर (आगरा विश्वविद्यालय)
पीएचडी
रंगनाथ वीर राघवाचार्य
वन-कम्मा
सुलोचना
बारे में
रांगेय राघव (17 जनवरी 1923 – 12 सितंबर 1962) हिंदी साहित्य के बहुआयामी और प्रगतिशील लेखक थे। उनका जन्म आगरा में हुआ था, लेकिन उनका मूल निवास दक्षिण भारत के तिरुपति के पास तिरुमल्लै था। उनका असली नाम तिरुमल्लै नंबकम वीरराघव आचार्य था। दक्षिण भारतीय परिवार से होने के बावजूद उन्होंने हिंदी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम चुना और इसे असाधारण कृतियों से समृद्ध किया। उन्होंने साहित्य की लगभग हर विधा में अपनी लेखनी चलाई, जिनमें उपन्यास, कहानी, कविता, निबंध, आलोचना, नाटक और इतिहास शामिल हैं।
रांगेय राघव ने 13-15 वर्ष की आयु से ही लेखन आरंभ कर दिया था। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर और वहीं से वर्ष 1948 में 'श्री गुरु गोरखनाथ और उनका युग' विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उनका लेखन मुख्य रूप से समाज के हाशिए पर खड़े दलितों, शोषितों और वंचित वर्गों की समस्याओं और उनके संघर्षों को उजागर करने पर केंद्रित था। वे यथार्थवादी और प्रगतिशील दृष्टिकोण के समर्थक थे।
उन्होंने 50 से अधिक उपन्यास लिखें। उनके प्रमुख उपन्यासों में कब तक पुकारूँ और धरती मेरा घर शामिल हैं। कब तक पुकारूँ दलित समाज की पीड़ा और उनके संघर्ष का सशक्त चित्रण है। मुर्दों का गाँव में सामंती शोषण और सामाजिक विषमता को दिखाया गया है, जबकि धरती मेरा घर विस्थापन और मानवीय जिजीविषा की कहानी है। उनके कहानी संग्रह जैसे गदल और सीधा रास्ता सामाजिक यथार्थ और मानवीय करुणा का अद्भुत मिश्रण हैं।
उन्होंने इतिहास और संस्कृति पर भी गहन शोध किया। उनकी कृतियाँ भारतीय समाज और इतिहास और मृत्युंजय इस दिशा में उनकी विद्वता को प्रकट करती हैं। उनकी कविताएँ और निबंध सामाजिक समानता, मानवीयता और न्याय पर आधारित हैं। उनकी रचनाओं में क्रांतिकारी विचारधारा और गहरी संवेदनशीलता झलकती है।
रांगेय राघव का जीवनकाल केवल 39 वर्षों का था, लेकिन इस अल्प अवधि में उन्होंने लगभग 150 पुस्तकों की रचना की। उनका निधन 12 सितंबर 1962 को 'टाटा मेमोरियल अस्पताल' में कैंसर से लड़ते हुए हुआ।
उनकी रचनाएँ आज भी समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने और सुधारने में मार्गदर्शन करती हैं। उनका योगदान हिंदी साहित्य में अमूल्य और प्रेरणादायक है।