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ज़िंदगी मौत से हारती नहीं (गीत)

जो हमारे ख़्यालों का रुख़ मोड़कर,
याद करते उन्हें जो गए छोड़कर।
बेजान है मौत तो मारती ही नहीं,
ज़िंदगी मौत से हारती ही नहीं।
वो महक अब तलक इन बयारों में है,
उनके क़िस्से अभी भी तो यारों में हैं।
जिसको जाना नहीं, मान लूँ सत्य क्यों?
ज़िंदगी के सिवा और क्या सत्य है?
मौत तो झूठ है ज़िंदगी सत्य है।
बेजान है मौत तो मारती ही नहीं,
ज़िंदगी मौत से हारती ही नहीं।
ज़िंदगी एक दरिया इसे जान लो,
ढूँढ़ता जो समन्दर पथिक मान लो।
है समन्दर से उठती हुई इक घटा,
है ज़मीं को भिगोती हुई इक घटा।
ज़िंदगी आस है, ज़िंदगी ख़ास है,
है किधर मौत वो? ज़िंदगी पास है।
ज़िंदगी के सिवा है खरा और क्या?
ज़िंदगी के सिवा और क्या सत्य है?
मौत तो झूठ है ज़िंदगी सत्य है।
बेजान है मौत तो मारती ही नहीं,
ज़िंदगी मौत से हारती ही नहीं।


रचनाकार : गोकुल कोठारी
लेखन तिथि : 2020
            

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