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ज़िंदगी की माया (कविता)

ये ज़िंदगी की माया,
कोई समझ न पाया।
ये ज़िंदगी हमारी,
है अनबुझी पहेली॥

कभी ख़ुशी का समंदर,
कभी ग़मों का है मंज़र।
किसी को बनाया रंक,
कोई बन गया सिकंदर॥

हमें बचपन से मिला है,
माता-पिता का साया।
संस्कार और गुणों का
उनसे ही सबक पाया॥

पढ़ लिखकर बड़े होकर,
जीवन अपना संभाला।
गृह लक्ष्मी को लाकर,
घर अपना है बसाया॥

ख़ुशियों से महकी बगिया,
घर आँगन मुस्कुराया।
बच्चों की किलकारी से
घर में आनंद आया॥

ज़िम्मेदारियों से हमने,
फ़र्ज़ अपना है निभाया।
परिवार में सभी का,
हमने है क़र्ज़ चुकाया॥

घर में सभी सुखी हैं,
ये बुज़ुर्गों की है माया।
अब नहीं कोई आशा,
न अब कोई निराशा॥

उनसे गिला नहीं है,
जिनने किया पराया।
मिले जो मुझे ख़ुशी से,
अपना उन्हें बनाया॥

साँसों की जब तक माया,
चल फिर रही है काया।
जिस दिन रुकेगी साँसें,
हो जाएगी राख काया॥

जाना है इस जहाँ से,
जो भी यहाँ पर आया।
ये ज़िंदगी की माया,
कोई समझ न पाया॥


लेखन तिथि : जनवरी, 2022
            

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