देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

वह आज भी बच्चा है साहब (कविता)

वह आज भी बच्चा है,
नन्हा सा मासूम सा,
वही जिसे कहते है लोग,
कोरा सा काग़ज़ सा।
मिला मुझे भगवान को,
साँचे में ढालते हुए,
नन्हें हाथों से बनी आकृतियों
में रंग भरते हुए
ख़ुद की उदर की आग में
जलकर उसने कभी,
हाथ पसारना नहीं सीखा
किसी चौराहे पर,
या फिर दुनियाँ के बाज़ार में,
बल्कि क़िस्मत की लकीरों में
फ़क़ीरी लिखने वाले रब को ही
उसने बनाने और बेचने का,
फिर उससे अपनी क़िस्मत
लिखने का अनूठा फैसला लिया।।
पर वह आज भी बच्चा है,
नन्हा सा मासूम सा,
वही जिसे कहते है लोग,
कोरा सा काग़ज़ सा।

पढाई में मन लगा नहीं,
पिता जब से बीमार हुए,
महाजन का ताना भारी
सुनने अब दुश्वार हुए,
जाने लगा कारखाने में पड़े
बंडलों की गाँठ सुलझाने
नहीं नहीं! साहब
शायद जीवन की
दुश्वारियों को सुलझाने
इसी आस में कि
कहीं खुल जाएँ कोई गाँठ,
जिसे सुलझाने में ही,
खप गई बाप की जवानी,
माँ भी किलकारियाँ सुनने से
पहले ही चली गई।
अब महाजन का जमा
कम करने को
यह अकेला निकल पड़ा है
स्कूल के शोरगुल से दूर
छोड़कर बस्ते का बोझ,
अब उठाने लगा है
ज़िम्मेदारियों बोझ...
जिसमें अब सिर्फ़ कारखाना है
रोटियाँ हैं, दवाईयाँ हैं...
पर वह आज भी बच्चा है,
नन्हा सा मासूम सा,
वही जिसे कहते है लोग,
कोरा सा काग़ज़ सा।

कहते हो कि बच्चा ही
भविष्य है किसी देश का
वही है निर्माता समाज का,
गाँव शहर और परिवेश का,
फिर कैसी तस्वीर
आज बना रहे हो "जय"
आने वाले कल की।
क्यों समाज नहीं सोचता
मुरझाते उपवन की
स्कूलों से बाहर होते
बेकल बेदम बचपन की
जब हम बच्चों को गढ़ने के बजाए
उनसे उनकी रोटी के बदले
अपनी तिजोरियों और इमारतों को
बनाने में लगे रहेंगे।
आने वाला कल को
क्या जवाब देंगे?
कैसे कहेंगे कि
वह आज भी बच्चा है साहब
नन्हा सा मासूम सा,
वही जिसे कहते है लोग,
कोरा सा काग़ज़ सा।


लेखन तिथि : 6 सितम्बर, 2021
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें