बलिया, उत्तर प्रदेश | 1994
हृदय और भी हो जाता व्यथित! जब सर्वस्व हारकर, जाता तुम्हारे समीप; कर देती कंटकाकीर्ण, उर को मेरे अपने शब्दभेदी बाणों से।
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