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व्यथित मन (कविता)

हृदय और भी हो जाता व्यथित!
जब सर्वस्व हारकर,
जाता तुम्हारे समीप;
कर देती कंटकाकीर्ण,
उर को मेरे
अपने शब्दभेदी बाणों से।


रचनाकार : प्रवीन 'पथिक'
लेखन तिथि : 2021
            

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