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विश्वास (कविता)

मंज़िल इतनी भी दूर नहीं,
कि ख़ुद चल कर, उसे पा न सके,
हालात हमारे, इतने न विकट
कि अपनों को आज़मा न सके।
थोड़ी कोशिश बस बाकी है,
पहुँचेंगे ज़रूर किनारे हम,
जज़्बात पर, अपने रख क़ाबू,
ऊपर वाले के सहारे हम,
हमने देखे हैं कई पतझड़,
हर बार लगे हैं फूल नए,
तो चिंता कैसी, कैसी उलझन,
अवश्य लिखेंगे इतिहास नए।
हमने जो देखे थे सपने,
उनको साकार करेंगे हम,
कोई भी मुश्किल हो समक्ष,
हँस कर स्वीकार करेंगे हम।


लेखन तिथि : 2021
            

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