सच कड़ुआ होता है
फिर भी अच्छा है,
बुराई लाख गुणवान हो जाए
सच्चाई से दूर रहता है।
विजयपर्व का ढोंग करना
क्यों अच्छा लगता है?
सत्यपथ पर चलने में
क्यों संकोच होता है?
बुराइयाँ लाख अच्छी हो जाए
विजयपथ पर नहीं चल सकती
सच्चाई का मार्ग कभी
अवरुद्ध नहीं कर सकती है।
बुराई लाख चाहे तो भी
कभी सम्मान नहीं पा सकती,
कोशिशों पर कोशिशें कर ले लेकिन
सच की राह में अटूट दीवार बनकर
भला कब तक टिक सकती है?
सच शांत, सरल, निर्मल बन
सतमार्ग पर चलती जाती,
दुश्वारियों के बीच भी हार न मानती।
क्षणिक दूर भले मंज़िल लगती
पर सच्चाई धैर्य नहीं खोती है,
मज़बूत विश्वास के साथ
मार्ग के हर एक काँटे
साफ़ करती चलती है,
अंत में बुराई पर विजय ही पाती है,
विजयपथ पर चलते हुए
मुस्कुराती है पर
कभी अभिमान नहीं करती है
बस! अपना झंडा बुलंद करती है।
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