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विजय दिवस (कविता)

पढ़ता हूँ सन 1971 के वीरों की गाथा, गर्व से सीना फूल सा जाता है,
रहने वाला हूँ इस वीर भूमि का, इस बात पर गर्व से मस्तक उठता जाता है।
जब भी पढ़ी मैंने वीरों की क़ुर्बानियाँ, दिल हुक-हुक कर रोया है,
उजड़ गए वीरों के परिवार, इस बात पर दिल कुछ खोया खोया है।

बिखर गई दुल्हनों की चूड़ियाँ, सुनी हो गई हज़ारों कलाइयाँ,
मिट गए माथे से सिंदूर, सुनी हो गई माताओं की गोदियाँ।
धरती पर पट गए लाशों के अम्बार, खून से ज़मीं हो गई लाल,
भारत पाकिस्तान के युद्ध में खो गए, भारत भूमि के कई लाल।

आज 16 दिसंबर के दिन हम, मनाते हैं विजय दिवस,
आज ही के दिन हम मनाते हैं, भारत की अखंडता का यश।
नमन करता हूँ आज देश के वीरों को, राष्ट्र के शूरवीरों को,
नमन करता हैं पूरा देश आज, युद्ध में शहीद सभी रणबाँकुरों को।

चमक रहे दूर गगन में, बनकर शहीद सब चाँद और तारें,
गिरती ज़मीन पर उनकी किरणें, हर घर के द्वारे-द्वारे।
इन्ही शहीदों ने बहाया था युद्ध में, बेख़ौफ़ अपना रक्त लाल,
उन्हीं की शहादत की बदौलत आज, हम जी रहें ज़िन्दगी ख़ुशहाल।

नमन करता हूँ शहीदों के परिवारों को, भेज दिए युद्ध में अपने लाल,
टूट पड़े थे जान हथेली में लेकर, किया था दुश्मनों का हाल बेहाल।
हिमालय भी कर रहा देखो, आज इन शूरवीरों को नमन,
हिन्द महासागर भी कर रहा देखो, इन वीरों को जल अर्पण।

नमन करता हूँ आज, राष्ट्र की अखंडता और अस्मिता को,
नमन करता हूँ आज, देश के वीरों की वीर गाथा को।
नमन करता हूँ आज, हर शहीद की माता को,
नमन करता हूँ आज, हमारे वीर पत्नी की सौहार्दता और शालीनता को।


लेखन तिथि : 16 दिसम्बर, 2021
16 दिसंबर, 1971 का दिन हमारे देश का एक यादगार दिन है जब हमारे देश के वीर सपूतों ने पाकिस्तान पर विजय प्राप्त कर पूर्वी पाकिस्तान को स्वाधीनता दिलाई थी। इस दिन को पूरा राष्ट्र इन वीरों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए 'विजय दिवस' के रूप में मनाता है। इसी अवसर पर देश के सिपाहियों की क़ुर्बानियों को एक श्रद्धांजलि है यह कविता।
            

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