आसमान रूठ गया,
हुई धरती लहूलुहान।
जानवर भी रो रहें,
पेड़ हुए निष्प्राण।
पहाड़ मिट रहें,
सुख रही नदियाँ।
जाने कहाँ गई वो,
हरी भरी वादियाँ।
आओ मिलकर पेड़ लगाएँ,
धरा को करें हरा भरा।
आने वाली पीढ़ी को दें,
इक हरी भरी वसुंधरा।
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