दूजा माह वैशाख है आया,
कृषकों को अति व्यस्त बनाया।
शुरू हुई फ़सलों की कटाई,
सबके चेहरे पर मुस्कान है छाई।
सूरज ने भी अपना ताप बढ़ाया,
पर कृषक नहीं इससे घबराया।
खलिहानों की रंगत वापस आई,
दिन-रात हो रही मड़ाई।
महुआ टपके महक उठी अमराई,
कोयल ने पंचम सुर की तान मिलाई।
घर-खलिहानों में सरसों गेहूँ के ढ़ेर लगे हैं,
बागों में मुस्काते सब पेड़ सजे हैं।
घर-घर है अब ख़ुशियाँ छाई,
ग़रीबी का न रहा ठिकाना भाई।
जल्दी-जल्दी सब काम निबटाओ,
शादी ब्याह की तैयारी करवाओ।
करके ब्याह सयाने बच्चों का अपना फ़र्ज़ निभाओ,
उनका भी सुखमय संसार सजाओ।
वैशाख माह है बड़ा सयाना,
लेकर आता ख़ुशियाँ और खजाना।
सबकी मेहनत का मोल चुकाता है,
तभी तो भूषण ये सबको भाता है।
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