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उसकी हो सरकार (कविता)

गाँव इकाई देश की,
इकाई गाँंव की घर-परिवार।
हर घर-परिवार का ख़्याल रखे जो,
बस उसकी हो सरकार।।

हमें न प्यार न द्वेष किसी से,
ना करनी है तकरार।
भ्रष्टाचार का भूत भगा दे,
जो, उसकी हो सरकार।।

महँगाई को ख़त्म करे जो,
दे रोजी बेरोज़गार।
ज्ञान-दीप जलाए घर-घर,
उसकी हो सरकार।।

खेतों में लाए हरियाली,
करे धन-धान्य बौछार।
जाति, धर्म का भेद मिटा दे,
उसकी हो सरकार।।

उन्नत शिक्षा, समृद्ध स्वास्थ्य दे,
करे ध्वस्त अवचार।
हर आश्वासन पूर्ण करे जो,
उसकी हो सरकार।।

लोकतन्त्र में नेता की नहिं,
जनता की सरकार।
जिस देश की जनता जागृत,
अव्वल वह सरकार।।


लेखन तिथि : 19 नवम्बर, 2021
            

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