तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो,
क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो।
आँखों में नमी हँसी लबों पर,
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो।
बन जाएँगे ज़हर पीते पीते,
ये अश्क जो पीते जा रहे हो।
जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है,
तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो।
रेखाओं का खेल है मुक़द्दर,
रेखाओं से मात खा रहे हो।
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