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तुम बिन कौन उबारे (कविता)

गोवर्धन धारी हे! कान्हा, बन जाओ रखवारे,
हे! कृष्णा हे! मोहन मेरे तुम बिन कौन उबारे।

हर कोई है व्यथित यहाँ तो अपने दुःख से हारे,
थोड़ी सी मुस्कान कन्हैया जग को दे दो प्यारे।

तुम बिन मेरे कान्हा अब ये नइया कौन उबारे,
तड़प उठी मानवता अब तो केवल तुम्हे पुकारे।

हे! यदुनन्दन दया करो अब बिलख रहे हैं सारे,
तुमने तो पहले भी कितने अनगिन असुर सँहारे।

दुष्ट कंस पूतना वकासुर एक एक कर मारे,
कोरोना का नाम मिटा दो राधा जी के प्यारे।

हर कोई है व्यथित यहाँ तो अपने दुःख से हारे,
हे! कान्हा हे! मोहन मेरे तुम बिन कौन उबारे।


लेखन तिथि : 7 अगस्त, 2020
            

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