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ट्रेन का तन्हा सफ़र (कविता)

तन्हा इस सफ़र में,
तुम्हारी याद आती है।
जो आँखे बंद कर लूँ तो,
तुम्हारी तस्वीर आती है।

वो तुम्हारा मुस्कुरा कर,
ज़ुल्फ़ों को झटक जाना।
वो रात भर मुझे तकिया
समझ कर सो जाना।
तुम्हारी धड़कन की आवाज़,
मुझे अब याद आती है।
जब ट्रेन की सीटी की,
आवाज़ आती है।

मेरी आँखें नम होती है,
जब रिमझिम बौछार होती है।
मैं सो नही पाता,
जब तुम्हारी याद आती है।

तन्हा इस सफ़र में,
न नींद आती है,
न चैन आता है।
यहाँ की हवाओं से,
तुम्हारे साँसों की आवाज़ आती है।
क्या करूँ अकेले,
तुम्हारी याद आती है।


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 12 मार्च, 2016
            

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