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शोर (कविता)

अश्रव्य शोर
आर्तनाद हृदय का
अरण्यनिनाद सम
करता उत्पन्न
विस्फोटक प्रभाव
पसरता एकाकीपन
भीड़ भाड़ के मध्य
यद्यपि होती प्राप्ति
विविक्त दृष्टि की
बोधि चित्त की
सुसुप्त शक्ति जागरण
इंद्रिय निग्रहता
परिव्रज्या मनःस्थिति
भौतिक जगत में
बाह्य शोर के मध्य
अंतः शोर में विलुप्त
होता प्रादुर्भाव
तपस्वी मन का।


रचनाकार : सीमा 'वर्णिका'
लेखन तिथि : 15 मई, 2022
            

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