हिन्दी साहित्य के सुविख्यात वरिष्ठ कवि, लेखक, आलोचक, सुधी सम्पादक शिवशरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' समकालीन साहित्य में लोकप्रिय रचनाकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। अंशुमाली जी छ: दशकों से अनवरत साहित्य सृजन में लगे हैं।
शिवशरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' की कविताओं में भारतीय संस्कृति एवं परम्परा के मूल्य मौजूद हैं वे अपनी परम्परा से ग्रहण करते हुए और आधुनिकता को समझते हुए नव्य साहित्य सृजन करते हैं।
अंशुमाली का समस्त काव्य वर्तमान के फलक पर भविष्योन्मुखी काव्य है। कवि ने विश्व-मानव और नव-मानव की परिकल्पना को अपनी कविता में सार्थक किया है।
शिवशरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' का जन्म 1944 में फतेहपुर जिले के भदबा नामक गाँव में हुआ था। यह जनपद उत्तरवाहिनी सुरसरि गंगा और यमभगिनी यमुना के मध्य अन्तर्वेद की पवित्र भूमि पर स्थित है। हिन्दी साहित्य को विविध विधाओं के माध्यम से समृद्ध करने वाले फतेहपुर के साहित्यकारों में- लाला भगवानदीन, रमाशंकर शुक्ल 'रसाल', रामेश्वर शुक्ल 'अंचल', गणेश शंकर विद्यार्थी, शिवरानी देवी, राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी, रमानाथ अवस्थी, कन्हैयालाल नन्दन, धनंजय अवस्थी तथा वर्तमान में असग़र वजाहत, अनूप शुक्ल, शैलेन्द्र कुमार द्विवेदी, प्रेम नन्दन, रामलखन सिंह परिहार 'प्रांजल' जैसे सुप्रसिद्ध साहित्यकारों के साथ शिवशरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' साहित्य सृजन कर रहें हैं।
अंशुमाली के काव्ययात्रा की शुरुआत सन् 1962 में होती है। अंशुमाली जी की प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ- अंशुमाली के त्रिदोहे, अष्टांग भारती, जनक छन्द की ज्योत्स्ना, कागज की नाव, लघुगीत संग्रह, साँसों की डोर, अंशुमाली की कुंडलियाँ, अंशुमाली ने कहा (दार्शिनिक अभिमत) और डॉ. धनंजय अवस्थी की कृति 'मिसाइलों की छाँव' का अंग्रेजी में 'अन्डर द शेडस् ऑफ मिसाइल्स' नाम से अनुवाद किया। फतेहपुर का काव्यप्रकाश, हजरत मोहम्मद साहब की आत्मकथा (गद्य रचना), इन्होंनें दो दर्जन से ज़्यादा समीक्षाँए लिखीं हैं।
अंशुमाली के यहाँ जीवन के अनुभवों की जो विपुलता है वह सबसे सशक्त और मार्मिक ढंग से उनकी भाषा में प्रकट होती है। इनका अनुभव संसार बहुत व्यापक है। अंशुमाली अद्भुत शब्दशिल्पी हैं। अंशुमाली जी का हमेशा से उदेश्य रहा मनुष्य की प्राणात्मा में विद्यमान दीपशिखा को जागृति करके उसके अन्तरात्मा को रोशन करना।
बहुरंगी ग्राम्य प्रकृति के चित्र अंशुमाली की कविताओं में हैं। इस धरती के सौन्दर्य से इनका मन बहुत दृढ़ता से बँधा हुआ है। अंशमाली के साहित्य में विश्वचिन्तन की दृष्टि देखने को मिलती है। अंशुमाली का कवि मन कहता है इस वसुन्धरा से विषमता मिट जाए और यह वसुन्धरा मानवीय हो जाए, रहने लायक हो जाए।
अंशुमाली मानवीय संवेदना की सूक्ष्मता को गहराई से पकड़ते हैं यही उनके साहित्य सृजन की भूमि है।
समाज की समस्याएँ अंशुमाली को बेचैन करती हैं और वे किसानों, मज़दूरों, बेटियों के पक्ष में लिखते हैं उनका सम्पूर्ण लेखक मन सामाजिक सरोकारों से जुड़ता है।
आपकी कविताओं एवं गीतों में लोक जीवन की झाँकी देखने को मिलती है। लोक जनमानस के संघर्ष से आपके गीत सीधे जुड़ते हैं। आपके गीतों से समाज को संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है। अंशुमाली के गीतों, कविताओं, मुक्तकों में समाज का दर्द सहज रूप में उभर कर सामने आया है और इसीलिए आपकी रचना हृदय को सीधे छू जाती है। आपके गीत बहुत मर्मस्पर्शी हैं।
शिवशरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' की भाषा शैली सहज, सरल व प्रवाहमय है। प्रांजल खड़ी बोली में लोकभाषा के शब्द घुले मिलें हैं। आपने दोहे, गीत, मुक्तक को विभिन्न लोकधुनों पर रचा है।
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