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शिक्षित बेरोज़गारी की समस्या (निबंध)

"तड़प रही है भूखी जनता, विकल मनुजता सारी।
भटक रहे है नवयुवक देश के, लिए उपाधियाँ भारी॥
काम नहीं, हो रहे निकम्मे, भारत के नूर- नारी।
हो कैसे उध्दार देश का, फैल रही बेकारी॥"
बे-रोज़गार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो बाज़ार में या समाज में प्रचलित मज़दूर दर पर कार्य करना चाहता है, लेकिन उसे काम नहीं मिल पाता। बे-रोज़गारी देश में उस समय विद्यमान होती है जब मज़दूर दर पर काम करने के लिए व्यक्ति इच्छुक होता है पर उन्हें रोज़गार प्राप्त नहीं होता। बालक वर्ग, रोगी, वृद्ध एवं अपंग व्यक्तियों को बे-रोज़गारी के श्रेणी के अंतर्गत नहीं रखा जाता। तथा जो व्यक्ति काम करने के लिए इच्छुक न हो, जिसे काम करने में कोई दिलचस्पी न हो वह भी बे-रोज़गारी की श्रेणी में नहीं आते है।

भारत के अंतर्गत शिक्षित बे-रोज़गारी एक प्रमुख समस्या है। केवल भारत ही नहीं बल्कि अन्य विकसित देशों में भी यह समस्या व्याप्त है। बे-रोज़गारी से केवल मानव शक्ति ही नहीं बल्कि देश की आर्थिक विकास भी अवरुद्ध जो जाती है। देश की युवा पीढ़ी देश के आर्थिक विकास में योगदान देने के लिए तैयार है पर बे-रोज़गारी के कारण पिछड़ रही है। हज़ारों वर्षों के उपरांत हमारा देश स्वतंत्र हुआ पर इसके साथ एक बहुत बड़ा अभिशाप छोड़ गया वह था बे-रोज़गारी और तब से लेकर अब तक इस समस्या का कोई निवारण नहीं हुआ है।

बे-रोज़गारी के चपेट में अनपढ़ ही नहीं बल्कि शिक्षित लोग अधिक देखने को मिलते है। आज-कल माता-पिता अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए भी दो बार सोच रहे है, क्योंकि देश में बे-रोज़गारी इतनी बढ़ रही है की उन्हें अपने बच्चों का भविष्य अंधकारमय प्रतीत हो रहा है। श्रमिक एवं मध्यम वर्ग के लोग अपने बच्चों के भविष्य के लिए उन्हें अच्छी शिक्षा प्रधान तो कर रहे है पर अंत में उन्हें कोई सफलता प्राप्त नहीं हो रही। इसके चलते माता-पिता को समाज के ताने सुनने पड़ते है। बच्चों को रोज़गार न मिलने के कारण उनकी चिंताएँ एवं ज़िम्मेदारियाँ बढ़ जाती है जिसके कारण उन्हें अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है।

देश में बे-रोज़गारी के अनेक कारण है। मशीनों ने अनेक व्यक्तियों का रोज़गार उनसे छिन लिया है। आधुनिकरण के कारण एक मशीन सौ लोगों का काम करने में कार्यरथ है। मशीनों ने इन्सानों का स्थान लेने के कारण अनेक लोग कला के बावजूद बेकारी से गुज़र रहे है। बे-रोज़गारी के अंतर्गत मध्यम वर्ग के लोग ज़्यादा झुंज रहे है। जो श्रमिक वर्ग है वह अपने बल से मज़दूरी कर रहा है। जो श्रमिक वर्ग है उनकी आवश्यकता सीमित होती है उनके लिए कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता, अर्थात कोई भी अच्छा या बुरा काम करने में वह हिचकिचाते नहीं। पर जो मध्यम वर्ग के लोग है उनको जीवन निर्वाह में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। क्यूँकि जो मध्यम वर्ग के ज़्यादातर लोग है वह शारीरिक काम करने में समक्ष नहीं होते। उन्हें कोई छोटा काम करने में शर्म आती है। वह केवल अपने अनुकूल, अपनी शिक्षा के अनुकूल काम ढूँढने का प्रयास करते है जिसके चलते बे-रोज़गारी एक तरफ़ से बढ़ रही है।

इस बे-रोज़गारी के चलते भारत में भिक्षुक एवं भूखमारी कि समस्या बढ़ रही है। कोरोना महामारी के चलते हम इसका प्रभाव और अधिक देख सकते है। इस महामारी के कारण अनेक लोगों कि नौकरियाँ चली गई, उन्हें खाने-पीने के लाले पड़ गए। एक पद के लिए आज के इस दौर में हज़ारों बे-रोज़गारों की भीड़ लग जाती है। जब तक इस समस्या का निवारण नहीं हो जाता तब तक हमारा भारत देश सुखी एवं सम्पन्न नहीं हो सकता।

बे-रोज़गारी का मुख्य कारण देश की बढ़ती जनसंख्या है। पहले तो इस बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाना आवश्यक है। नहीं तो इस बे-रोज़गारी का निवारण नहीं हो पाएगा। परिवार नियोजन योजना का महत्व हर देश वासियों को समझाना अवश्यक है। बे-रोज़गारी का कारण हमारी शिक्षा प्रणाली भी है। स्कूल, कॉलेज में बच्चों को मानसिक रूप से तैयार किया जाता है ना की शारीरिक रूप से। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चयात बच्चों की यही मानसिकता होती है की वह बाहर कोई क्षेत्र में काम करे ना की स्वयं का कोई उद्योग खोले। बच्चे अपने शिक्षा के मुताबित नौकरी की चाह रखते है। जिसके कारणवश वह बे-रोज़गारी रह जाते है। इसके साथ सरकारी नौकरी की चाह में अनेक शिक्षित लोग घर पर बेकार बैठे हुए है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद भी चपरासी की नौकरी करने के लिए मजबूर है। जात-पात के कारण भी बे-रोज़गारी बढ़ रही है। उच्च जाती के लोग बे-रोज़गारी बैठने के लिए तैयार है, पर वह कोई छोटी नौकरी नहीं करना चाहते। भारत कृषि प्रधान देश है। 70% लोग भारत में कृषि पर निर्भर है। पर उन्हें बाज़ार में उत्पाद्य न मिलने के कारण बे-रोज़गारी देखने को मिलती है।

बे-रोज़गारी की समस्या को कम करने के लिए देश में औद्योगीकरण करना चाहिए। देश में लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहिए। मुख्य उद्योग के साथ-साथ लघु उद्योग भी शुरू करना चाहिए। शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत बच्चों को मानसिक रूप के साथ श्रम बल के रूप से भी तैयार करना चाहिए। सरकार ने भी अपनी ओर से कई क़दम उठाए है। जैसे की ‘मेड इन इंडिया’ जिसके चलते अनेक लोगों को रोज़गार प्राप्त होगा। शिक्षित तथा अशिक्षित लोगों को इसका लाभ होगा।

अत: स्पष्ट है की सरकार ने भी बे-रोज़गारी को हटाने के लिए अनेक पर्याप्त क़दम उठाए है। जैसे की परिवार योजना, नए-नए उद्योगों की स्थापना, परीक्षण केन्द्रों की स्थापना आदि। वास्तव में इस समस्या का मूल शिक्षा प्रणाली है। अगर शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत परिवर्तन आएगा तब जाकर एक हद तक बे-रोज़गारी की समस्या कम हो सकती है। अगर शिक्षित या अशिक्षित लोग अपना स्वयं का कोई उद्योग स्थापित करे तो वह बे-रोज़गारों को रोज़गार प्रधान करा सकता है। इसके अंतर्गत समाज को भी अपना योगदान देना अनिवार्य है। समाज में देश की वही प्राचीन भावना जगानी होगी।

"उत्तम खेती मध्यम बान, निषिध चाकरी भीख निदान"


लेखन तिथि : मई, 2021
            

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