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शिक्षा (कविता)

ज्ञान का भंडार है शिक्षा,
ज़िंदगी का सम्मान है शिक्षा।
देश का उत्थान है शिक्षा,
हर व्यक्ति का अरमान है शिक्षा।

शिक्षा देती ज्ञान के चक्षु,
बहती विश्व में प्रगति की धार।
जीवन को देती नया आयाम,
देती राष्ट्रों को मज़बूत आधार।

संविधान का यह ज्ञान कराती,
अधिकारों से यह अवगत कराती।
बच्चों का यह भविष्य बनाती,
प्रगति का यह मार्ग दिखाती।

इतिहास से यह कराती पहचान,
राष्ट्र को दिलाती ऊँचा स्थान।
विश्व में फहराता राष्ट्र का परचम,
व्यवसाय को देती नया उद्यम।

बनाती यह डाक्टर, इंजीनियर,
वकील और सनदी लेखाकार।
बनाती अनपढ़ को ज्ञानी,
देती देश को आई॰ए॰एस॰ अफ़सर।

बनते वैज्ञानिक शिक्षा पाकर,
बनाती यह सेना के कमांडर।
सभी को दिलाती रोज़गार,
शिक्षा देती काम का हुनर।

किसानों को देती प्रयुक्ति का ज्ञान,
किसानों के पूरे करती अरमान।
नई पद्धति से करते खेती,
लहलहाते उनके खेत खलिहान।

संविधान देता शिक्षा में आरक्षण,
वंचितों को होता शिक्षा का ज्ञान।
उनको भी मिलता नया आयाम,
ज़िंदगी में मिलता सही सम्मान।

शिक्षा बनाती संत तुलसीदास,
रची जाती तब तुलसी रामायण।
खुल गए जब ज्ञान के चक्षु,
व्यास ने रच दिए वेद महान।

कवि रच देते हज़ारों कविता,
पाकर भाषाओं का सही ज्ञान।
शिक्षा से मिलते ज्ञान के चक्षु,
माँ सरस्वती का मिलता वरदान।

सभी को मिलेगी जब सही शिक्षा,
प्रकाशमय होगी ज्ञान से धरती।
न माँगेगा फिर कोई भी भिक्षा,
होगी समाज में ज्ञान की पूर्ति।


लेखन तिथि : 5 सितम्बर, 2021
            

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