वतन के लिए ओढ़े जो कफ़न,
कहलाए वो शहीद-ए-आज़म।
न रास आया ज़ुल्मों सितम,
यूँ कहलाए वो शहीद-ए-आज़म।
जिनकी हुकूमत का न डूबा उजाला,
उन्हें झुठला गए वो शहीद-ए-आज़म।
बंदूकें बोई फिर लहू से सींचा,
दहला गए वो शहीद-ए-आज़म।
हर ज़ुल्मों की टक्कर में सरफ़रोशी का नारा,
सिखला गए वो शहीद-ए-आज़म।
रंगा बसंती फाँसी का फंदा,
चूमे उसे जब शहीद-ए-आज़म।
मरते-मरते भी अपनी वतन-परस्ती,
निभा गए वो शहीद-ए-आज़म।
इंक़लाबी नारा ज़मीं पे गूँजा,
तिनके सी उड़ती ज़ुल्मी हुकूमत,
बहा ले गए वो शहीद-ए-आज़म।
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