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सौतेला (कहानी)

माँ को रोता देख रवि परेशान सा हो गया। पास में बैठे गुम-सुम बड़े भाई से पूछा तो माँ फट पड़ी।
उससे क्या पूछता है? मैं ही बता देती हूँ आज तेरे इस भाई ने तेरी माँ को जीते जी मार डाला।

आख़िर हुआ क्या माँ? कुछ तो बताओ
कुछ नहीं बेटा! मैं इसकी माँ तो हूँ नहीं।
तभी तो आज इसने तेरी माँ को सौतेला कह दिया। किसी के बहकावे में आकर इसनें मेरी ममता का मज़ाक बना डाला।

आख़िर ये सब क्या है भैया?
कुछ भी तो नहीं। मैं तुम्हारा सगा भाई नहीं हूँ। ये मेरी माँ नहीं चाची हैं। पापा मेरे पापा नहीं चाचा हैं। सपाट स्वर में कवि ने कहा।
तभी बाहर से आवाज़ आई- तू ठीक कह रहा है बेटे।

अरे राजीव भैया! आप अचानक। रमा ने राजीव से पूछा- सब ठीक तो है न?
हाँ रमा सब ठीक है। परंतु अचानक आना भी अच्छा है।कम से कम मैंनें भी देख लिया कि लाट साहब के पर निकल आए हैं।

रवि और कवि ने राजीव के पैर छुए।
कवि को संबोधित करते हुए राजीव ने पूछा- किसने तुमसे कहा कि ये तुम्हारे सगे माँ बाप भाई नहीं हैं?
कवि चुपचाप खड़ा रहा
रमा ही बोली- रहने दो भैया, बच्चा है।
नहीं रमा बच्चा अब बड़ा हो गया है।

हाँ तो कवि अब मेरी बात ध्यान से सुनो यह सच है कि ये तुम्हारे सगे नहीं। लेकिन जिसने भी तुम्हें यह सब बताया क्या उसने यह भी बताया कि तेरी माँ तुझे जन्म देते ही भगवान को प्यारी हो गई थी। तब रमा ने ही तुझे अपने आँचल की छाँव की थी।
हम सब ने बहुत कोशिश की तुझे ले जाने की जाने की लेकिन रमा की ज़िद के आगे हार मान गए। हमने रमा को तेरी माँ का दर्जा दिया। तेरे नाना नानी जब तक जीवित रहे उन्होंने कभी रमा को पराई नहीं समझा। तेरी माँ की मौत के बाद वह टूट से गए थे। मगर रमा ने उन्हें अपने माँ-बाप की तरह बेटी की तरह उन्हें संभाला था। आज मुझे ख़ुद को रमा का भाई कहलाने पर गर्व हो रहा है। मगर आज तुझे अपना भांजा कहते हुए भी शर्म आ रही है। रमा और जीजा जी ने अपने बेटे से भी ज़्यादा प्यार तुझे दिया। तुम्हारी सुख सुविधाओं का ख़्याल रखा। बदले में तुमने सौतेला होने का ज़ख़्म दे दिया। रमा तुम्हारी माँ नहीं तो मैं भी तुम्हारा मामा कैसे हो सकता हूँ?

बीच में ही रमा बोल पड़ी- यह सब क्या है भाई।
राजीव बोला- कुछ नहीं रमा! मैं इस नालायक के लिए अपने माँ-बाप के अरमानों का गला नहीं हो सकता। मरने से पहले माँ-बाप ने मुझसे वचन लिया था कि जीवन में कभी भी रमा के साथ परायों जैसा व्यवहार नहीं करना, तो तू ही बता।
आज तो इसने सबको पराया कर दिया।

रमा ने उसके आँसू पोंछे- क्या भैया! जब आप धीरज खो दोगे तो कैसे चलेगा। बच्चा है समझ जाएगा। परेशान मत होइए।
मैं क्या करूँ? रमा तू ही बता मै क्या करूँ?

बस मामा। अब कुछ मत कहिए। जाने किस भाव से मैं ऐसा कह गया।
कहते हुए कवि रमा के चरणों में गिर कर रो पड़ा। माँ मुझे माफ़ कर दो। मैंने आपका दिल दुखाया है। मुझे सजा दो माँ। मैं माफ़ी के लायक नहीं हूँ। मेरा अपराध क्षमा के लायक नहीं है।

रमा ने कवि को उठा गले से लगा लिया और हौले हौले उसकी पीठ सहलाने लगी। उसकी आँखों से गंगा जमुना सी बह रह थी।
माहौल हल्का करते रवि ने राजीव से कहा- मामा अब तो सब सगे हो गए तो फिर मैं चलता हूँ। आख़िर सौतेले का क्या काम है?
अब तू पिटेगा मुझसे। तू तो मेरी जान है प्यारे, कहकर राजीव ने रवि को बाँहो में भर लिए।
कवि और रमा जोर से हँस पड़े। भ्रम का बादल छंट चुका था।


लेखन तिथि : 2021
            

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