संत कबीर के समाजवाद में ऊँचा ना कोई नीचा था,
संत कबीर ने आजीवन वृक्ष समानता का सींचा था।
ढोंग-पाखंड को कबीर ने आजीवन धिक्कारा था,
खुलकर विरोध किया और उसे नकारा था।
छुआ-छूत ना करो आपस में रहो प्रेम से नर-नारी,
जातिवाद में ना तुम उलझो बनो आपस में हितकारी।
मरना सबको एक दिन बंदे ना विष आपस में घोल,
धन-दौलत सब आनी-जानी मानस को ना तौल।
ईर्ष्या-द्वेष रख आपस में चहुँ दिशा में डोले,
मोक्ष मिलेगा ना तुझको बंदे संत कबीरा बोले।
वेद, कुरान, गीता पढ़के पंडित ना तू होवै,
ढाई अक्षर प्रेम का पढ़ले पंडित जग में होवै।
रहें प्रेम से सब मिलकर भेदभाव ना हो मन में,
संत कबीर को पढ़ लो समदर्शी के शब्दन में।
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