देशभक्ति / सुविचार / प्रेम / प्रेरक / माँ / स्त्री / जीवन

संभावनाएँ (कविता) Editior's Choice

लगभग मान ही चुका था मैं
मृत्यु के अंतिम तर्क को
कि तुम आए
और कुछ इस तरह रखा
फैलाकर
जीवन के जादू का
भोला-सा इंद्रजाल
कि लगा यह प्रस्ताव
ज़रूर सफल होगा।

ग़लतियाँ ही ग़लतियाँ थी उसमें
हिसाब-किताब की,
फिर भी लगा
गलियाँ ही गलियाँ हैं उसमें
अनेक संभावनाओं की

बस, हाथ भर की दूरी पर है,
वह जिसे पाना है।

ग़लती उसी दूरी को समझने में थी।


रचनाकार : कुँवर नारायण
            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें